मां बाप की करो कद्र !

मैंने उनकी मोहब्बत को सीने में जलते देखा है ।
वर्षों ना बरसी थी जो आँखें उन्हें बरसते देखा है ।

ख़ुदा गवाह हैं, मैने ख़ुद के ख़ुदा को, हरपल मरते देखा है।
अंधी होजानी थीं, उन आँखों को, जिनसे हमने ऐसा होते देखा है !

दुनियावी इंसानियत, तुझे हैवानियत के हलाहल में गिरते देखा है ।
जो फ़ौलाद गलाने वाले को, औलाद के सामने पिघलते देखा है ।

डीजे की धूम पर, मैंने नई बहुरिया को नागिन नाच करते देखा है ।
हाय, फटी क्यूं न मेरी छाती जो बूढ़ी माँ को वहीं बिलखते देखा है !

तू नादां है जो तूने सिर्फ़ हसीं, खुशी का बहार ए गुब्बार देखा है ।
पूछ उससे तजुर्बा-ए-ज़िन्दगी, जिसने जलकुम्भी के जलते अम्बार देखा है ।

वो फरेबी है, जिसने तेरे हाथों की लकीरों में तेरी क़िस्मत रोते देखी है ।
उस मां की आंखों में देख जिसने तुझे अपने तन से पैदा होते देखी है ।

द्वारा रचित ✍️@©®रजनीश कुमार मिश्र
(हक़्क़-ए-नक़्ल महफ़ूज़)

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