काल चक्र-सर्व शक्तिमान !!!
अनजान प्रिये ! तु जान प्रिये, मैं ही सबका हूँ प्राण-प्रिये ।
नादान प्रिये ! तुम्हरे किरिये, सच बात कहुँ यह मान प्रिये ।
ना रूठ प्रिये ! मैं ना झुठ प्रिये, मैं मृत्यु सा हूँ साँच प्रिये ।
स्व मगन प्रिये ! मैं अगन प्रिये, मैं हिम सा शीतल काँच प्रिये !
मेरी शान प्रिये ! कुछ तो कहिये, मैं मूक नहीं वाचाल प्रिये ।
चंचल प्रिये ! मैं ही चल-अचल प्रिये , मैं जीवन का प्रवाह प्रिये !
कोमल प्रिये ! मैं ही काया कंचन प्रिये, मैं ही भूत विकराल प्रिये ।
मेरी चाँद प्रिये ! मैं धरती व आसमान प्रिये, इनमें छिपि मेरी भान प्रिये ।
ऊर्वशी प्रिये ! मैं ही अवतरण प्रिये, मैं करता हूँ भवपार प्रिये ।
मैं जनम प्रिये, मैं मरण प्रिये ।
मैं सुख प्रिये, मैं दुःख प्रिये ।
मैं जगत पिता, मैं जगत माता ।
मैं चर-अचर, मैं ही हूं ब्रह्माण्ड प्रिये ।
मैं मधुर-मिलन, मैं विष-विरह प्रिये ।
मैं ही मैं बस जान प्रिये .... I
मेरी मोह प्रिये, मेरी काम प्रिये ।
मैं मौत प्रिये, मैं ही हूँ गर्भधान प्रिये ।
मैं बाल काण्ड, मैं उत्तर काण्ड ।
मैं स्वयं ब्रह्मा, मैं ही हूँ महाकाल प्रिये ।
मैं सीता स्वयंवर, मैं हवन कुण्ड ।
मैं जानकी हरण, मैं हूं लक्ष्मण-वाण प्रिये।
मैं बाल कृष्ण, मैं पुतना वध ।
मैं राधा- रानी, मैं मीरा भक्ति भण्डार प्रिये ।
मैं सारथी, मैं कुरुक्षेत्र का युद्ध ।
मैं मोहक मुस्कान, मुझ सा ना कोई क्रुद्ध प्रिये ।
मुझमें बीज जो बोयेगा, फल उसी रूप में पायेगा।
कितनो को मैनें अमर किया, कितनो को अज्ञात किया ।
मैं काल-चक्र, मैं परम् ज्ञान ।
मेरा ही बस ध्यान करो, मैं ही हूँ भगवान प्रिये ।
copyright content
@ Rajneesh Kumar Mishra
Bahut sunder sir 👌
ReplyDeleteMillions of thanks
Delete