दर्द-ए-पैग़ाम: एक ग़ज़ल
ना वो वक्त, ना वो सौगात, ना वो सर-ए-शाम भूलेगा
ना वो शूकू, ना वो जज़्बात, ना वो नज़र-ए-पैग़ाम भूलेगा
मेरी आह, तेरी उफ़,आगोश, गुफ्तगू-ए-इश्क़, ना परवाज़ भूलेगा
कत्थई आँखें, तेरी हया, अदा, इकरार-ए-इश्क़,ना आगाज़ भूलेगा
ना वो हवा, ना वो आब, ना वो अश्क-ए-सैलाब भूलेगा
ना वो बोसा, ना वो दवा, ना वो दरिया-ए-शराब भूलेगा
ना वो ज़ख्म, ना वो दर्द, ना वो मरहम-ए-दवात भूलेगा
ना तो हम, ना तो तुम, ना वो करिश्मा-ए-काएनात भूलेगा
एक दिन संदूक-ओ-खज़ाना, अलमारी-ए-इल्म, हिसाब-ए-क़िताब खुलेगा
मुहब्बत-ए-मुदई, दीवार-ए-दीदार, कियामत-ए-दिन,
तेरा नक़ाब खुलेगा ।
हक़्क़-ए-नक़्ल महफ़ूज़...!
❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️
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