ब्रिज जो बार बार गिर रहा है...


ये जो ब्रिज जो बार बार गिर रहा है.
ये  जो ब्रिज जो बार बार गिर रहा है 
वो हर बार गिर कर हमारे गिरे हुए नेताओं, मंत्रियों और दलालों की गिरी हुई मानसिकता का गुणगान गुनगुना रहा है!

इनका गिरवी रखा हुआ गौरव गर्त में रोज गिर रहा है 
और गहराई की गहनता से गुंज्यमान कुछ इस कदर है कि गगन समान गिरी में भी गूंज रहा है!

गरीबों की गठरी के गुठली पर गिरे हुए गाज से हुई थी
 इस पुल की आगाज़,
गरीबों के गोस्त गटकने वाले गिद्धों के पेटो में हाय लगी थी जैसे आग!
फिर क्या था ये गोबर की गुजगुज में गुजारा करने वाले अजगर  निगल लिए अपना अपना भाग!

गज़ब गौमुख सा लगता है इनका गजमुख, 
पर गुप्त गबन गृह गगनचुंबी गुम्बद है,
उदर में इनके पाचन हेतु अम्लराज व गैस का गोलंबर है!

ये नल जल के साथ निगल जाते हैं, ये मवेशियों के चारा खाते हैं,
ये पुल पुलिया गिराते हैं क्योंकि ये बालू, सीमेंट, छड़ और गिट्टी जो खाते हैं,
ये सड़क, नाला, शौचालय हज़म कर जाते हैं और थल मार्ग को छोड़ वायु मार्ग से आते जाते हैं,

ये छिछोरों से छछककर गुंडे बने और फिर गुंडाराज बने,
ये जातीय समीकरण बुनकर लूटने को सरकार बने,
ये इतने नीच हैं कि ख़ुद के नज़रों में भी न गिरते हैं,
ये जीते जी अपनी मूर्तियां बनवाते हैं और गद्दार इतिहास लिखते हैं!
@ रजनीश कुमार मिश्र 








Comments

  1. गजब गिरा गिरा के भीगा भीगा के लिए हो भाई!

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  2. ब्रिज गिरा गिरा के लेते रहिए श्रीमान जी

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  3. बहुत खूब

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  4. Bahut sunder 👌🙏

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  5. Bahut sunder 👌🙏

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  6. Main Bhagwan se prathna karta hu ki Ye apki varso ki mehnat ek din Safalta se jarur takraye 👌👌🙏🙏

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