अनजान प्रिये ! तु जान प्रिये, मैं ही सबका हूँ प्राण-प्रिये । नादान प्रिये ! तुम्हरे किरिये, सच बात कहुँ यह मान प्रिये । ना रूठ प्रिये ! मैं ना झुठ प्रिये, मैं मृत्यु सा हूँ साँच प्रिये । स्व मगन प्रिये ! मैं अगन प्रिये, मैं हिम सा शीतल काँच प्रिये ! मेरी शान प्रिये ! कुछ तो कहिये, मैं मूक नहीं वाचाल प्रिये । चंचल प्रिये ! मैं ही चल-अचल प्रिये , मैं जीवन का प्रवाह प्रिये ! कोमल प्रिये ! मैं ही काया कंचन प्रिये, मैं ही भूत विकराल प्रिये । मेरी चाँद प्रिये ! मैं धरती व आसमान प्रिये, इनमें छिपि मेरी भान प्रिये । ऊर्वशी प्रिये ! मैं ही अवतरण प्रिये, मैं करता हूँ भवपार प्रिये । मैं जनम प्रिये, मैं मरण प्रिये । मैं सुख प्रिये, मैं दुःख प्रिये । मैं जगत पिता, मैं जगत माता । मैं चर-अचर, मैं ही हूं ब्रह्माण्ड प्रिये । मैं मधुर-मिलन, मैं विष-विरह प्रिये । मैं ही मैं बस जान प्रिये .... I मेरी मोह प्रिये, मेरी काम प्रिये । मैं मौत प्रिये, मैं ही हूँ गर्भधान प्रिये । मैं बाल काण्ड, मैं उत्तर काण्ड । मैं स्वयं ब्रह्मा, मैं ही हूँ महाकाल प्रिये । मैं सीता स्वयंवर, मैं हवन कुण्ड । मैं ...
ये जो ब्रिज जो बार बार गिर रहा है. ये जो ब्रिज जो बार बार गिर रहा है वो हर बार गिर कर हमारे गिरे हुए नेताओं, मंत्रियों और दलालों की गिरी हुई मानसिकता का गुणगान गुनगुना रहा है! इनका गिरवी रखा हुआ गौरव गर्त में रोज गिर रहा है और गहराई की गहनता से गुंज्यमान कुछ इस कदर है कि गगन समान गिरी में भी गूंज रहा है! गरीबों की गठरी के गुठली पर गिरे हुए गाज से हुई थी इस पुल की आगाज़, गरीबों के गोस्त गटकने वाले गिद्धों के पेटो में हाय लगी थी जैसे आग! फिर क्या था ये गोबर की गुजगुज में गुजारा करने वाले अजगर निगल लिए अपना अपना भाग! गज़ब गौमुख सा लगता है इनका गजमुख, पर गुप्त गबन गृह गगनचुंबी गुम्बद है, उदर में इनके पाचन हेतु अम्लराज व गैस का गोलंबर है! ये नल जल के साथ निगल जाते हैं, ये मवेशियों के चारा खाते हैं, ये पुल पुलिया गिराते हैं क्योंकि ये बालू, सीमेंट, छड़ और गिट्टी जो खाते हैं, ये सड़क, नाला, शौचालय हज़म कर जाते हैं और थल मार्ग को छोड़ वायु मार्ग से आते जाते हैं, ये छिछोरों से छछककर गुंडे बने और फिर गुंडाराज बने, ये जातीय समीकरण बुनकर लूटने को सरकार बने, ये इत...
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