मैं सिपाही हूं, आशिक-आवारा हुआ हूं!
मैं दौर-ए-दर्द का इक सहारा हुआ हूं । ताज़-ए-सर-जमीं का सितारा हुआ हूं ।। मैं दौर-ए-दर्द का इक सहारा हुआ हूं ।। मैं सिपाही हूं, आशिक-आवारा हुआ हूं। मुझे नासमझss -२ तू ना समझss । मैं फलक से वतन पे उतारा हुआ हूं ।। मैं दौर-ए-दर्द का इक सहारा हुआ हूं । मैं सिपाही हूं, आशिक-आवारा हुआ हूं।। मेरे खून-ए-ज़िगर-२ तू मरहम है । मैं मां के पैरों का महावर हुआ हूं ।। मैं दौर-ए-दर्द का इक सहारा हुआ हूं । मैं सिपाही हूं, आशिक-आवारा हुआ हूं।। दूद-ए-मादर का असर-२ मेरा फ़र्ज़ है । ईश्क-ए-रूहानी-बाग का, मैं कुंवारा हुआ हूं ।। मैं दार-ए-दर्द का इक सहारा हुआ हूं । मैं सिपाही हूं, आशिक-आवारा हुआ हूं।। मेरे बूढ़े बाबा-२ तू अनाज है । मैं तेरे पसीने से संवारा हुआ हूं ।। मैं दार-ए-दर्द का इक सहारा हुआ हूं । मैं सिपाही हूं, आशिक-आवारा हुआ हूं। हक़्क़-ए-नक़्ल महफ़ूज़...! ✍️© रजनीश कुमार मिश्र