उस्तादों के उस्ताद के लिए...!
मेरा ख्याल है कि मुझे अब तेरे ख्याल का खाल पहनना होगा । अपने मिजाज़ का जनाजा उठा तेरे मिजाज़ में पलना होगा । तू हुज़ूर के हवा सरीख भी नहीं, पर हाय ये कैसी मज़बूरी, मुझे तेरे नक्श-ए-क़दम पे चलना होगा । मेरा सर ख़ुद झुकता है उस्तादों के आगे, ज्यों सजदे में सबका झुकता होगा । सोचो क्या है तेरी खासियत की ये मेरी नज़र तेरे दिद से छुपता वो बचता होगा । पता है सबको कि तू दलाल है, अब तु भी मान ले तुमसे उस्तादी नहीं, बस दलाली ही बेहतर होगा । तू कहां जाता होगा, कब आता होगा, शान-वो-शौकत की हवा कहां भरवाता होगा ? तू हक मारता होगा, पेट काटता होगा औरों का, तू दौलत लूटता वो लुटवाता होगा । मैंने सुना है तुम्ही से कि ज़िन्दगी है चार दिन की मेरा दावा है कि ऐसा कह के तेरा रूह कांप जाता होगा । ✍️कलमगारी @©रजनीश कुमार मिश्र (हक़्क़-ए-नक़्ल महफ़ूज़)